कबिता उत्पन्न कही और होती हे, शोभा कही अन्यत्र पाती हे. कबि की लेखनी से सर्जित रचना शोभा बहा पाती हे , जहा उसके विचार , प्रसार तह उसमे कथित आदर्श का ग्रहण और अनुसरण होता हे.
आभार उस देवी माँ सरस्वती का जिसके आशीर्वाद से शव्दों की अनुभूति होती हे
लेखनी चलती रहती हे .
उन सहयोगी वन्धुओ का जिनकी सदभावना बनी रहती हे ,समय समय पर उत्साह वर्धन करते रहते हे ,
उस महान समय का जो मुझे अपने व्यवसाय के बीच प्राप्त होता रहता हे , उसी अल्प समय का १९७० से सदुपयोग करता रहा हूँ
जब भी विचार आये उन्हें उसी समय लेखनिवद्ध करता रहता हूँ .
"नेह्दूत"
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