सब दुखों के साये में है
क्या कविता सुनाये
सारा जहाँ उदासी के साये में
क्या कविता सुनाये
सदा रहते जो राजनीती के रंग में
केवल वही देश के सेवक है;
क्या कविता सुनाये,
आसमान की चाट जिनकी
पड़े रहते फूट पाथो पर;
नंगे बदन जिनके,
वेह गन्दी नाली के कीडें हैं'
क्या कविता सुनाये
बन्ने आये थे जो देश सेवक ,
वही आज कुर्सी की चाह में,
खुद ही लगे है ,
कुर्सी बचने में,
न जाने मध्यावधि कभी भी हो जाये
क्या कविता सुनाये.
-(नेह्दूत)
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