Wednesday, February 24, 2016
Saturday, January 30, 2016
जापान सुनामी
------------------ कुदरत भी है ----------------
अभी कुदरत यह खेल तलातुम [ पानी के थपेड़े] बहुत दिखाएगी |
कभी होगी भारी वर्षा वर्फ फिर बांध नदियां बहाएगी |
भौतक-कोहे-निदा [ मसनुई आवाज़ का पहाड़ ] जब सीमा पार कर जायेगा |
तो करवाने-सदा [ आवाज़ का काफिला] भी पलट जायेगा |
खिंची रहेगी सारो पर नफरत की ये तलवारे |
मता-ए -जीस्त [ ज़िन्दगी की पूंजी ] का अहसास बढ़ता जायेगा |
यूँ ही होता रहा अगर दुनिया में सैलाब |
तो सतह-ए -जमी पे चलना भी आ जायेगा |
दरबाजे अपने इसी दर खोलते नहीं |
सिवाए पानी के अंदर भी कौन आएगा ?
अभी कुदरत यह खेल तलातुम बहुत दिखाएगी |
कुदरत के होने का यह संकेत नेहदूत क्या काफी नहीं है |
....... नेहदूत .....
{ जापान सुनामी}
Friday, January 29, 2016
काल्पनिक दिलासा
काल्पनिक दिलासा
माँ कहती हे
बेटे
तू भूल कर भी न छोड़ना पाठ शाला जाना
तुझे पा कर ग्यान बनना होगा बड़ा अधिकारी
बड़ा अधिकारी
मै भी गर्भ से कह सकूँ
यह मेरा बेटा हे
न देख काल्पनिक सपने
न बांध अपने को इस मोह पाश में
हे विधवा बीमार माँ
तेरा बेटा चाह कर भी न बन पायगा
बड़ा अधिकारी
न हो पायगी तेरी ठंडी छाती
क्योकि
आरक्षण का कोटा
मंत्रियो विधायकों
के बेटे
भाई भतीजा बाद
कोटे ही कोटे
जो कुछ बचा तो
पैसे बालो के बेटे
अभी तक तो न सुलग पाई हे चूल्हे की आग
क्या ठंडी होगी पेट की आग
माँ
इस समय जरुरी हे चार खोया आटा
तेरे रोगी तन को चाहिए दवा
वह भी तब जब दे सकूँ डाकघर को फ़ीस
फिर दवा के पैसे
फिर उस साहूकार की उधारी
साथ में व्याज
जो बापू लिखा गए
उसके बही खाते में
भोले भाले भाव से
दे गये अपना अँगूठा
उसके कोरे कागज पर
माँ बोली
बस कर बेटा
बस कर
अब और न आगे कह
मैं न सुन सकूँगी
काल्पनिक सपने
क्या यही हैं
वे सपने जो संजोये थे
हमारे महान नेताओं ने
स्वतन्त्रता के पहले ।
.... नेहदूत...
क्योकि
आरक्षण का कोटा
मंत्रियो विधायकों
के बेटे
भाई भतीजा बाद
कोटे ही कोटे
जो कुछ बचा तो
पैसे बालो के बेटे
अभी तक तो न सुलग पाई हे चूल्हे की आग
क्या ठंडी होगी पेट की आग
माँ
इस समय जरुरी हे चार खोया आटा
तेरे रोगी तन को चाहिए दवा
वह भी तब जब दे सकूँ डाकघर को फ़ीस
फिर दवा के पैसे
फिर उस साहूकार की उधारी
साथ में व्याज
जो बापू लिखा गए
उसके बही खाते में
भोले भाले भाव से
दे गये अपना अँगूठा
उसके कोरे कागज पर
माँ बोली
बस कर बेटा
बस कर
अब और न आगे कह
मैं न सुन सकूँगी
काल्पनिक सपने
क्या यही हैं
वे सपने जो संजोये थे
हमारे महान नेताओं ने
स्वतन्त्रता के पहले ।
.... नेहदूत...
देश की नई पीढ़ी
देश की नई पीढ़ी
चल पड़ी किस राह पर!
हम आप कर रहे
कवि सम्मेलन, मुशयरा
उधर छात्र कर रहे
आयोजन विद्यालय मेँ
डिस्को के मुकाबले
यह हो रहा देश का उत्थान।
नेहदूत
चल पड़ी किस राह पर!
हम आप कर रहे
कवि सम्मेलन, मुशयरा
उधर छात्र कर रहे
आयोजन विद्यालय मेँ
डिस्को के मुकाबले
यह हो रहा देश का उत्थान।
नेहदूत
Thursday, October 4, 2012
ख्याल ......................
नजर के सामने उनके अक्स आते बहुत है ............
बो हम से दूर गई तो दिल में ख्याल आते बहुत है .........
थी हम से उसकी निस्वते बहुत .........
ढलती जब शाम तो बो याद आती बहुत ..........
ये ढलती राते फलक पलके सुनसान सन्नाटा ........
बीते दिनों के फ़साने याद आते बहुत ........
हर कदम पर ज़िन्दगी काम आये ....
हमें उस सांथ सांथ रहने रहने की याद आती बहत ......
नजर तआकुब में हे , उस के चहरे के .........
इसी तलाश हमने फ़रेब खाए बहुत .........
दूर हुई न तीरगी मख्मूर इस घर के आँगन की .......
दिये हमने हर दीवाली पे मुंडेरो पर जलाये बहुत .............
ना चाह कर भी .........
हर पल याद आये बहुत ...........
(नेह्दूत )
बो हम से दूर गई तो दिल में ख्याल आते बहुत है .........
थी हम से उसकी निस्वते बहुत .........
ढलती जब शाम तो बो याद आती बहुत ..........
ये ढलती राते फलक पलके सुनसान सन्नाटा ........
बीते दिनों के फ़साने याद आते बहुत ........
हर कदम पर ज़िन्दगी काम आये ....
हमें उस सांथ सांथ रहने रहने की याद आती बहत ......
नजर तआकुब में हे , उस के चहरे के .........
इसी तलाश हमने फ़रेब खाए बहुत .........
दूर हुई न तीरगी मख्मूर इस घर के आँगन की .......
दिये हमने हर दीवाली पे मुंडेरो पर जलाये बहुत .............
ना चाह कर भी .........
हर पल याद आये बहुत ...........
(नेह्दूत )
Tuesday, October 2, 2012
Friday, February 17, 2012
क्या कविता सुनाये
क्या कविता सुनाये
सभ दुखो के साए में है
क्या कविता सुनाये
सदा रहते जो राजनीती के रंग में
केवल वही देश के सेवक है
क्या कविता सुनाये
आसमान की छत जिनकी
फुट पाथो पर नंगे बदन
वो गंदगी के कीड़े मकोड़े
क्या कविता सुनाये
जो आलिशान बंगलो में मानवता के चमकते दीप है
क्या कविता सुनाये
बाकी सभ कहलाते दकियानूसी
पोंगापंथी लकीर के फ़कीर
क्या कविता सुनाये
स्वतंत्रता का इतिहास लिखा हर जुबान पर
पर सुनता कौन है
क्या कविता सुनाये
बन्ने ए जो देश सेवक वही अज कुर्सी की चाह में
सुना है देश की हालत चिंता जनक सीमा पर तनाव है
क्या कविता सुनाये
क्या कोई विशवास करे
हर एक लगा रहा टकटकी
क्या बोलते है
क्या कविता सुनाये
...............................................नेह्दूत
सभ दुखो के साए में है
क्या कविता सुनाये
सदा रहते जो राजनीती के रंग में
केवल वही देश के सेवक है
क्या कविता सुनाये
आसमान की छत जिनकी
फुट पाथो पर नंगे बदन
वो गंदगी के कीड़े मकोड़े
क्या कविता सुनाये
जो आलिशान बंगलो में मानवता के चमकते दीप है
क्या कविता सुनाये
बाकी सभ कहलाते दकियानूसी
पोंगापंथी लकीर के फ़कीर
क्या कविता सुनाये
स्वतंत्रता का इतिहास लिखा हर जुबान पर
पर सुनता कौन है
क्या कविता सुनाये
बन्ने ए जो देश सेवक वही अज कुर्सी की चाह में
सुना है देश की हालत चिंता जनक सीमा पर तनाव है
क्या कविता सुनाये
क्या कोई विशवास करे
हर एक लगा रहा टकटकी
क्या बोलते है
क्या कविता सुनाये
...............................................नेह्दूत
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