Monday, July 25, 2011

प्रभु की रचना

प्रभु की रचना 
यह नभ नीलिमा लिए 
प्रभु की अध्भुत रचना है 
न कोई और छोर  न कोना  है 
इसका न कोई उदय न अंत होता है 
पश्चिम इतना अन्तरिक्ष यही 
दिखता जो कल था आज वही 
हरे भरे वन सुहावने  नदी नाले 
फल फूल वन औषधियां 
तेरे अन्दर भरा हुआ था 
जंगल खनिजों का भण्डार 
मानव मन दोहन कर बैठा 
सुख मर्ग तृष्णा  में 
लेकिन उसका अंश मात्र भी 
तू वापस न कर पाया 
तेरा कैसा ये मन अन्न जल 
धाराएं सूख गयीं धरा पर 
   


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