प्रभु की रचना
यह नभ नीलिमा लिए
प्रभु की अध्भुत रचना है
न कोई और छोर न कोना है
इसका न कोई उदय न अंत होता है
पश्चिम इतना अन्तरिक्ष यही
दिखता जो कल था आज वही
हरे भरे वन सुहावने नदी नाले
फल फूल वन औषधियां
तेरे अन्दर भरा हुआ था
जंगल खनिजों का भण्डार
मानव मन दोहन कर बैठा
सुख मर्ग तृष्णा में
लेकिन उसका अंश मात्र भी
तू वापस न कर पाया
तेरा कैसा ये मन अन्न जल
धाराएं सूख गयीं धरा पर
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