ख़ामोशी
उसकी और मेरी ख़ामोशी सदा बतियाती थी,
ये शायद हम दोनों को ही पता था ,
कितनी ही बाते आँखों ही आँखों में,
खामोश निगाहे कहती थी
कभी आशा कभी ब्यथा .
कभी उसकी थमी हुई झील जेसी खामोश निगाहे .
मेरे मन को छू जाती थी ,
उसकी और मेरी बो खामोश निगाहे,
अंत हीन कहानी ...
"नेह्दूत'
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