Friday, January 29, 2016

काल्पनिक दिलासा

                                                     काल्पनिक दिलासा 


माँ कहती हे 
 बेटे 
तू भूल कर भी न छोड़ना  पाठ शाला जाना 
तुझे पा कर ग्यान बनना होगा बड़ा अधिकारी 
बड़ा अधिकारी 
मै भी गर्भ से कह सकूँ 
यह मेरा बेटा हे 
               न देख काल्पनिक सपने 
                न बांध अपने को इस मोह पाश में 
               हे विधवा बीमार माँ 
तेरा बेटा  चाह   कर भी न बन पायगा 
बड़ा अधिकारी 
                  न हो पायगी तेरी ठंडी छाती
क्योकि
आरक्षण का कोटा
मंत्रियो  विधायकों
के बेटे
भाई  भतीजा बाद
कोटे ही कोटे
जो कुछ बचा तो
पैसे बालो के बेटे

  अभी तक तो न सुलग पाई हे चूल्हे की आग
क्या ठंडी होगी पेट की आग
माँ
इस समय जरुरी हे चार खोया आटा
तेरे रोगी तन को चाहिए दवा
   वह भी तब जब दे सकूँ डाकघर को फ़ीस
   फिर दवा के पैसे
   फिर उस साहूकार की उधारी
   साथ में व्याज
     जो बापू लिखा गए
    उसके बही खाते में
   भोले भाले भाव से
   दे गये अपना अँगूठा
   उसके कोरे कागज पर
   माँ बोली
 बस कर बेटा
  बस कर
 अब और न आगे कह
  मैं न सुन सकूँगी
 काल्पनिक सपने
  क्या यही हैं
 वे सपने जो संजोये थे
हमारे महान नेताओं ने
 स्वतन्त्रता के पहले ।
.... नेहदूत...
                 

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