------------------ कुदरत भी है ----------------
अभी कुदरत यह खेल तलातुम [ पानी के थपेड़े] बहुत दिखाएगी |
कभी होगी भारी वर्षा वर्फ फिर बांध नदियां बहाएगी |
भौतक-कोहे-निदा [ मसनुई आवाज़ का पहाड़ ] जब सीमा पार कर जायेगा |
तो करवाने-सदा [ आवाज़ का काफिला] भी पलट जायेगा |
खिंची रहेगी सारो पर नफरत की ये तलवारे |
मता-ए -जीस्त [ ज़िन्दगी की पूंजी ] का अहसास बढ़ता जायेगा |
यूँ ही होता रहा अगर दुनिया में सैलाब |
तो सतह-ए -जमी पे चलना भी आ जायेगा |
दरबाजे अपने इसी दर खोलते नहीं |
सिवाए पानी के अंदर भी कौन आएगा ?
अभी कुदरत यह खेल तलातुम बहुत दिखाएगी |
कुदरत के होने का यह संकेत नेहदूत क्या काफी नहीं है |
....... नेहदूत .....
{ जापान सुनामी}
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