उधम दानवता ने मचा रखा हे आग दिलो में जला राखी हे, सब होंठ सिले से दीखते हे छुप्पी चहरो पर छाई हे, भीतर आग धधकती हे, लगता हे बस अब तो गागर मानवता की छलकती हे.
आभार उस देवी माँ सरस्वती का जिसके आशीर्वाद से शव्दों की अनुभूति होती हे
लेखनी चलती रहती हे .
उन सहयोगी वन्धुओ का जिनकी सदभावना बनी रहती हे ,समय समय पर उत्साह वर्धन करते रहते हे ,
उस महान समय का जो मुझे अपने व्यवसाय के बीच प्राप्त होता रहता हे , उसी अल्प समय का १९७० से सदुपयोग करता रहा हूँ
जब भी विचार आये उन्हें उसी समय लेखनिवद्ध करता रहता हूँ .
"नेह्दूत"
No comments:
Post a Comment